Saturday 17 December 2011

सर्दी की बेरहम रात

रात भर करवटें बदलते रहे ,सरसराती हवा खिड़की की  झीनी सी बारी से आ रही थी ,लग रहा था जैसे हमारे अन्दर बर्फ की तलवार जा रही हो..रजाई इधर से संभालू कभी उधर से..सोने ही नहीं दे रही थी वो सर्दी..ऊपर से बाहर आने जाने वाली आवाजें...एक एक घंटे की खबर लग रही थी..आज तो जागरण होने वाला था..नहीं नहीं रतजगा ..कोशिश कर के एक झपकी आई भी तो फिर हडबडा के उठ बैठे..आज तो जान ही जायेगी ..बस अब और नहीं ..उठ कर इधर उधर के दो चक्कर लगाये..कोसा अपनाप को इस परिस्थिति के लिए...काश..!! ..कमसेकम शनिवार की रात इतनी बेरहमी से तो न बीतती ..एक शनिवार की रात का इंतज़ार छह दिनों से होता है ..उफ़ ..!!
अब कभी नहीं ..कभी नहीं ..गले के बारे में निश्चिन्त रहेंगे..इसे संभाल कर रखेंगे..क्यूंकि फांसी का फंदा बन कर जो आ जा रही थी बेहिसाब ......खांसी !!!
:) 

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home