Wednesday 16 December 2015

यूँ तुम से बिछड़ कर हम ....




(चित्र गूगल से साभार )

यूँ तुम से बिछड़ के हम रह नहीं पाते हैं 
कैसे कहें कुछ कह नहीं पाते हैं ..
ये उम्र यूँ ही कट रही है ..
कुछ है जो हम सह नहीं पाते हैं 
यूँ तुम से बिछड़ कर हम रह नहीं पाते हैं ..

अनजाना सा लगता ये शेहर है ..
अनजाने से लगते सब नाते हैं ..
हम मन ही मन में घबराते हैं 
यूँ तुम से बिछड़ के हम रह नहीं पाते हैं 

न सोचा था तुमने .न सोचा था हमने 
कैसे बने हैं  बंधन कैसे नाते हैं ..
न रातें कटती हैं ..न दिन काटे जाते हैं 
यूँ तुमसे बिछड़ के हम रह नहीं पाते हैं ..

कभी कुछ कहना होता है तुमसे  ,
कभी  कभी की कुछ ऐसी बातें हैं
जो न खुदी सुनते हैं न सुना पाते हैं 
यूँ तुमसे बिछड़ कर हम रह नहीं पाते हैं  



Tuesday 8 December 2015

जोड़ ....



टुकड़े टुकड़े बिखरे फर्श पर पड़ी ज़िन्दगी की हर एक परछाई ..बस जोड़ कर बन जाएगी एक छवि ,मनचाही ..ऐसे ही अंकित होगी एक उम्र ,जो गुज़र जायेगी उस संगीन राज़ को अंजाम देते देते ,जिसमे मखमली नाज़ुक पलों का जोड़ घटाव है और कभी उन कठोर क्षणों का कत्ल !
तहखाने में रखे प्यार को हर उम्र छु कर जायेगी पर उसे बेड़ियों से आज़ाद करने में वर्ष लग जायेंगे..और फिर आज़ादी मिलेगी भी तो कब...जब वो बूढा हो गया होगा..झुर्रियां होंगी उसके हाथों पर और स्नेह से गले लगाने पर उसके पुराने कपड़ो से गंध आएगी..
जिस्म हर पल अधेड़ हो रहा है ,पर मन अभी भी चंचल ,गिनतियों से बेखबर ..हौले से अपने उद्गार छलका ही देता है ..
आओ जोडें उन फर्श पर पड़े ज़िन्दगी की परछाइयों के टुकड़ों को ..बनाने एक सुन्दर ,अभूतपूर्व जिंदगानी ..
जिसमे हर वो मनचाहा पल हो ..और हो प्यार..बेड़ियों  से आज़ाद..!!!
(चित्र गूगल से साभार )

Friday 27 November 2015

तुम ही हो ...






(चित्र गूगल से साभार )

मेरा  साथ तुम ही  हो ,मेरे पास तुम ही हो 
कुछ इस कदर ,दरबदर ...बेशुमर 
मेरे ख्वाब तुम ही  हो ..मेरी बात तुम ही हो 
जैसे  बेखबर , रहबर ..इकरर 
मेरी सांस  तुम ही हो ,मेरी आस तुम ही हो ..
ए  हमसफ़र ,दिलबर ,रहगुज़र 
मेरी चाह तुम ही हो ,मेरी राह तुम ही हो 
देखूं दिन भर ,भर भर ,उम्र भर ..



Friday 31 July 2015

बात इतनी सी है ...


(चित्र गूगल से साभार )

कुछ कही न गयी जों ,कुछ बातें हैं वो  बतानी 
बात इतनी सी है 
कुछ शाम कुछ कहानी ,बात इतनी सी है 
मुझे फर्क नहीं कुछ ,बदल भी जाओ जो  तुम 
मुझे याद हैं वो निशानी ,बात इतनी सी है  
नहीं भूलेगा कभी , की कभी की थी बड़ी मनमानी 
बात इतनी सी है 
कभी शब्द तो कभी सिर्फ पानी ,बात इतनी सी है ...




Monday 20 July 2015


अपनापन ...







कुछ अपनों को , अपना बनाने में 
हम अपनापन खोते रहे
कुछ गैरों से उनको बचाने में
हम अपनापन खोते रहे
ताउम्र मिली तकलीफों में
उनको आजमाने में ,
हम अपनापन खोते रहे
हर रोज़ बदलते मयखानों में
हम अपनापन खोते रहे
कुछ रिश्ते अनजानों में 
हम अपना पन खोते रहे 
कहीं किन्हीं गिरेबानों से
हम अपनापन खोते रहे..

Tuesday 17 February 2015

मन की बात ..












तिलस्म बहुत है ज़माने में लुभाने के लिए ..और किस्म बहुत हैं ज़माने में भुलाने के लिए ..
मंज़ूर हो अगर खैर तो रहमत बरसती है ..नहीं तो सरेशाम रूह यु ही तरसती है ..
मुकम्मल न हो अंजाम तो फिर सरफरोशी ही सही ..बिन बात ही गाहे बगाहे ताजपोशी ही सही
सब कुछ न हो खुलेआम दिल जलाने के लिए ..न कुछ चर्चा हो आम इस बहाने के लिए ..
तेरे मन की कश्ती ,क्यों हिंडोले खा रही ..वक़्त है बहुत बदनाम इस अफसाने के लिए ..
कोशिशें नाकाम ..अब भुलाने के लिए ..सच का यही अंजाम ..बच जाने के लिए


(चित्र गूगल से साभार )